NGTV NEWS । News Desk । अमेरिका और मध्यस्थ क़तर ने इस युद्धविराम समझौते का एलान किया. बीते 15 महीने से चली आ रही जंग में इसे अहम कामयाबी माना जा रहा है. ये जंग सात अक्तूबर 2023 को हमास के इसराइल पर हमले के बाद से जारी है.
ईरान और अरब देशों के मीडिया में इस समझौते पर ख़ूब चर्चा हो रही है. ईरानी मीडिया की कुछ रिपोर्टों में इसे फ़लस्तीनी सशस्त्र गुट हमास की जीत के तौर पर पेश किया जा रहा है.
क़तर ने 15 जनवरी को घोषणा की थी कि इसराइल और हमास युद्धविराम और बंधकों-कैदियों की अदला-बदली के समझौते पर पहुंच गए हैं.
क़तर के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री मोहम्मद बिन अब्दुल रहमान अल थानी ने कहा कि यह समझौता 19 जनवरी से प्रभावी होगा. उन्होंने कहा कि समझौते में तीन चरण शामिल हैं.
ईरानी मीडिया ने हमास और इसराइल के बीच हुए अस्थायी युद्ध विराम समझौते पर विस्तार से ख़बरें और विश्लेषण छापे हैं.
15 जनवरी को ईरान के सरकारी टेलीविज़न चैनल ने शाम के अपने मुख्य समाचार में युद्धविराम को इसराइल के लिए ‘सबसे बड़ी हार’ बताया.
इस ख़बर में कहा गया कि युद्ध में अपनी सभी संसाधन झोंकने के बावजूद इसराइल हमास को ख़त्म करने में नाकामयाब रहा है. वहीं, एक विश्लेषक ने युद्धविराम को ईरान के ‘रेज़िस्टेंस फ़्रंट’ की जीत बताया.
16 जनवरी को ईरान के रेडियो और टीवी चैनलों ने बताया कि ‘रेज़िस्टेंस की जीत’ के बाद फ़लस्तीन से लेकर लेबनान, यमन, इराक़, तुर्की और इस क्षेत्र के अन्य देशों में जश्न मनाया गया.
ब्रॉडकास्ट मीडिया और दूसरे आउटलेट्स ने भी ये बताया कि हमास के वरिष्ठ सदस्य खलील अल-हय्या ने समूह को मदद करने में ईरान की भूमिका के लिए उसे शुक्रिया कहा है.
सुधारवादी विचारधारा वाले अख़बार अरमान-ए-इमरोज़ ने समझौते के एलान के कुछ घंटों बाद एक लेख में ये कहा कि डोनाल्ड ट्रंप ने हाल में धमकियां दी थी कि अगर बंधकों को रिहा नहीं किया गया तो बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी.
इन धमकियों के कारण ही हमास समझौते पर तैयार हुआ होगा. अख़बार ने ये भी कहा है कि ट्रंप का अमेरिका का राष्ट्रपति बनना इसराइल के लिए भी चुनौती हो सकता है.
सरकारी दैनिक अख़बार ‘ईरान’ ने राजनीति के दो जानकारों का हवाला देते हुए कहा कि ये सौदा ‘इसराइल की रणनीतिक हार’ और ‘7 अक्तूबर के बाद के दौर की शुरुआत’ दिखाता है, जिसमें इसराइल कमज़ोर और बेअसर है.
अरब प्रेस और वेबसाइटों में ग़ज़ा युद्ध विराम के बारे में कुछ टिप्पणीकारों ने ये तर्क दिया है कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ‘प्रभाव’ के बिना ये समझौता नहीं हो सकता था.
वहीं, अन्य लोगों ने ये उम्मीद जताई है कि ये समझौता प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू की अगुवाई वाली इसराइली गठबंधन सरकार के भीतर राजनीतिक दरार पैदा करेगा. जबकि कुछ ये भी सवाल कर रहे हैं कि क्या समझौते का मतलब है कि युद्ध हमेशा के लिए ख़त्म हो गया?
इसराइल के एक फ़लस्तीनी नेता और वहां की संसद के पूर्व सदस्य जमाल ज़हलका ने लंदन से छपने वाले अरबी अख़बार अल-कुद्स अल-अरबी में लिखा कि ये समझौता महीनों पहले हो सकता था, लेकिन ‘मुख्य अड़चन बिन्यामिन नेतन्याहू की स्थिति’ थी.
ज़हलका ने तर्क दिया है कि नेतन्याहू ने अपना मन बदल लिया और ट्रंप के प्रभाव की वजह से ही समझौते पर सहमत हुए.
उन्होंने लिखा, “ट्रंप इसराइल के राजनीतिक वर्ग को प्रभावित करते हैं. नेतन्याहू ईरानी परमाणु कार्यक्रम, सऊदी अरब के साथ संबंधों के सामान्यीकरण, वेस्ट बैंक में बस्तियों को वैध बनाने, यमन की नाकाबंदी, सीरिया में तुर्की के प्रभाव को सीमित करने और इसराइल के सैन्य उद्योग में अमेरिकी निवेश को बढ़ाने सरीखे अहम मुद्दों पर ट्रंप और उनके प्रशासन के साथ गर्मजोशी से भरे रणनीति सहयोग की उम्मीद कर रहे हैं.”
ऐसी ही बात अनुभवी फ़लस्तीनी विचारक मुनीर शफ़ीक़ ने अल-जज़ीरा की वेबसाइट पर लिखी है.
उन्होंने लिखा, “ग़ज़ा युद्ध को शायद पहले महीने में ही रोका जा सकता था, अगर नेतन्याहू की ‘आपराधिक ज़िद’ और बाइडन प्रशासन की ओर से ज़ायनिस्ट सेना और नेतन्याहू को आक्रामकता जारी रखने के लिए समर्थन न होता.”
शफ़ीक ने लिखा, “नेतन्याहू ने सैन्य हार से बचने के लिए अपने संकीर्ण व्यक्तिगत हितों को आगे रखा.”
उन्होंने लिखा, “डोनाल्ड ट्रंप के डर के बिना, नेतन्याहू इस समझौते को मंज़ूरी देने के लिए तैयार नहीं होते.”
वहीं सीरिया के सरकारी टीवी चैनल अल-काहिरा न्यूज़ की वेबसाइट ने भी कहा है कि इस युद्धविराम समझौते तक पहुंचने में सबसे प्रमुख कारण ‘अंतरराष्ट्रीय दबाव’ था, ख़ासतौर पर ट्रंप की ओर से.
मोरक्को के टिप्पणीकार मोहम्मद अहमद बेनिस ने अरब-अल-अरबी-अल-जदीद अख़बार में लिखा है कि युद्धविराम समझौता ‘नेतन्याहू को सरकारी गठबंधन में उनके धुर-दक्षिणपंथी सहयोगियों को लेकर दुविधा में डाल देगा.’
बेनिस ने लिखा है, “ग़ज़ा में युद्ध विराम ज़ायनिस्ट दक्षिणपंथियों के लिए राजनीतिक झटका है, क्योंकि वह इसराइल की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भारी कीमत चुकाए बिना बंधकों को मुक्त कराना चाहते थे.”
वहीं यूएई के स्काई न्यूज़ अरेबिया वेबसाइट ने तर्क दिया है कि युद्धविराम समझौते से तभी जंग रुकेगी जब इसकी शर्तें मानी जाएंगी. हालांकि, ये स्पष्ट नहीं है कि इस समझौते से जंग हमेशा के लिए ख़त्म होगी कि नहीं.
इस लेख में कहा गया है कि युद्धविराम समझौता संभवतः नाज़ुक है और कोई भी छिट-पुट घटना इस समझौते के लिए ‘बड़ा ख़तरा’ साबित हो सकती है.
मोरक्को के शिक्षाविद और टिप्पणीकार तारिक़ लिसूई ने लंदन की वेबसाइट राय अल-यूम में लिखा, “आने वाले दिनों में हम अंतरराष्ट्रीय न्यायलयों की ओर से युद्ध अपराध के वांछित नेतन्याहू की सरकार का तेज़ी से पतन होते देखेंगे.”
Anu gupta