NGTV NEWS । NEWS DESK । सोमवार 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के तौर पर दोबारा शपथ लेकर एक बार फिर इतिहास बनाएंगे.
वह पहली बार साल 20 जनवरी 2017 को राष्ट्रपति बने थे. अब ट्रंप चार साल तक बाहर रहने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय में वापसी कर रहे हैं. ये इस सदी में ऐतिहासिक वापसी है.
हालाँकि वो ऐसा करने वाले दूसरे अमेरिकी राष्ट्रपति हैं. ट्रंप से पहले यह करिश्मा ग्रोवर क्लीवलैंड के नाम था, जो पहली बार साल 1885 में अमेरिका के राष्ट्रपति बने और 1889 में चुनाव हारने के बाद 1893 में उन्होंने दोबारा वापसी की थी.
निवर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन और उप राष्ट्रपति कमला हैरिस समारोह की पुरानी परंपरा को फिर से ज़िंदा कर रहे हैं, जिसमें हारे हुए उम्मीदवार विजेताओं के साथ मंच साझा करेंगे.
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबमा, जॉर्ज डब्ल्यू बुश और बिल क्लिंटन भी समारोह का हिस्सा बनेंगे.
अपने विदाई भाषण में बाइडन ने चेतावनी दी थी कि अमेरिका चंद टेक अरबपतियों के दबदबे वाली ओलिगार्की (अल्पतंत्र) में तब्दील हो सकता है.
विडंबना है कि दुनिया के तीन सबसे अमीर टेक उद्योगपति- एलन मस्क, जेफ़ बेज़ोस और मार्क ज़ुकरबर्ग मेहमानों की सार्वजनिक सूची में हैं. उनके साथ गूगल के भारतीय मूल के सीईओ सुंदर पिचाई और एप्पल के टिम कुक भी हैं.
विदेशी नेताओं की गेस्ट लिस्ट धुर दक्षिणपंथी दोस्तों की ओर अधिक झुकी दिखती है. इस सूची में अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवीयर मिली और इटली की प्रधानमंत्री जियार्जिया मेलोनी हैं.
इस सूची में जर्मनी के अल्टरनेटिव फ़ॉर जर्मनी (एएफ़डी) पार्टी के टीनो श्रुपाला और ब्रिटेन की पॉपुलिस्ट पार्टी- ‘रिफ़ॉर्म पार्टी’ के नेता नाइजल फ़राज का नाम भी शामिल है.
जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में साउथ एशियन स्टडीज़ में प्रोफ़ेसर देवेश कपूर विदेशी मामलों और भारत-अमेरिकी द्विपक्षीय संबंधों पर कई अकादमिक पेपर लिख चुके हैं.
विदेशी मेहमानों पर उनका कहना था, “आमंत्रित किए गए विदेशी मेहमानों की सूची को मैंने अभी मीडिया रिपोर्टों में देखा है, उनमें से अधिकांश दक्षिणपंथी नेता हैं.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आमंत्रित करने के ट्रंप के फ़ैसले ने कई लोगों को चौंकाया. शी ट्रंप के पहले कार्यकाल में उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी थे.
ट्रंप की प्रवक्ता कैरोलाइन लेविट के अनुसार, यह राष्ट्रपति का, ‘उन सभी देशों के साथ खुले संवाद की इच्छा को दिखाता है, चाहे वे विरोधी हों, प्रतिद्वंद्वी हों या सहयोगी.’
इसके उलट ट्रंप को कभी ‘क़रीबी दोस्त’ कहने वाले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समारोह का हिस्सा नहीं होंगे.
सवालु उठ रहा है कि ट्रंप ने एक ‘दुश्मन’ को क्यों बुलाया और एक दोस्त को क्यों नज़रअंदाज़ कर दिया?
सुमित गांगुली इस बात से बहुत हैरान नहीं हैं, “मैं मानता हूं कि यह अपने विरोधियों के साथ व्यक्तिगत कूटनीति में ट्रंप के भरोसे को दर्शाता है.”
“लेकिन इस मामले में उनका रिकॉर्ड वास्तविकता से बहुत दूर रहा है. आख़िरकार, उत्तर कोरिया के किम जोंग उन के साथ तमाम तामझाम के बावजूद उनकी कोशिशों से कुछ भी नहीं निकला था.
प्रोफ़ेसर पाल ने कहा, “समारोह के लिए मेहमानों के नाम तय करते हुए नवनिर्वाचित राष्ट्रपति की टीम और जॉइंट कांग्रेशनल कमेटी ऑन इनागुरल सेरेमनीज़ ने कई चीज़ों का ख़्याल रखा होगा. इन फ़ैसलों में मोटा चंदा देने वाले, राष्ट्रपति के सहयोगी और उनकी कोर टीम जितनी अहमियत रखती है, उतने ही विदेशी मेहमान भी.”
कुछ विश्लेषकों का तर्क है कि सूची में मोदी का होना या ना होना उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना लगता है.
वैसे भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर और चीन के उप राष्ट्रपति हान झेंग और अधिकांश देशों के राजदूत इस समारोह में शामिल होंगे.
इस लिहाज़ से देखें तो एक तरफ़ शी ने ट्रंप का न्योता ठुकरा दिया, तो दूसरी तरफ़ इस साल के अंत में होने वाली क्वाड समिट के दौरान मोदी के पास ट्रंप के साथ संबंध सुधारने का पर्याप्त मौका होगा.
जानकारों के बीच इस बात पर लगभग आम सहमति है कि विदेशी नेताओं को आमंत्रित करना, ख़ासकर दक्षिणपंथी लोकलुभावन रुझान वाले नेताओं को, यह ट्रंप के कूटनीतिक शैली में एक बदलाव का संकेत है.
यह ऐसे नेताओं से गठबंधन बनाने का संकेत है जिनकी विचारधारा ट्रंप से मेल खाती है.
Anu gupta