भारतीय मैन्युफैक्चरर्स के लिए चेतावनी है? Donald Trump के ‘मेक इन अमेरिका’ का क्या होगा असर

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NGTV NEWS । NEWS DESK ।  राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप (Donald Trump) का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में जोर उन देशों के लिए चेतावनी है, जो अगला चीन (China) बनने की होड़ में हैं. उन्होंने कहा कि कंपनियां अमेरिका में अपनी फैक्ट्रीज सेटअप करें या फिर अमेरिका (America) में अपने निर्यात पर ज्यादा टैरिफ का सामना करने के लिए तैयार रहें. अमेरिकी राष्ट्रपति ने दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) के दौरान एक वीडियो संबोधन में कहा कि दुनिया के हर बिजनेस के लिए मेरा मैसेज बहुत आसान है: अमेरिका में अपना प्रोडक्ट बनाएं और हम आपको पृथ्वी पर किसी भी देश के मुकाबले सबसे कम टैक्स देंगे. ट्रंप ने अमेरिका में काम करने वाली कंपनियों के लिए 15% कॉर्पोरेट टैक्स रेट का प्रस्ताव दिया है.

इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?

हाल के दशकों में ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग एशिया में ट्रांसफर हो गया है, जिसमें मुख्य रूप से चीन और कुछ हद तक वियतनाम, इंडोनेशिया (Indonesia) और मलेशिया (Malaysia) शामिल हैं. ये दूसरे देशों के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर एयर कंडीशनर और जूते से लेकर टी-शर्ट तक सब कुछ बनाते हैं, जो सप्लायर्स के एक कई देशों के नेटवर्क पर निर्भर करता है. चिप-मेकिंग जैसी हाई-टेक मैन्युफैक्चरिंग पहले से ही अमेरिका में बढ़ रही है. इस बीच तैयार माल के लिए पर्याप्त ग्लोबल सप्लाई भी मौजूद है. अमेरिका में बेरोजगारी कम है और क्षमता सीमित है. कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरर्स अमेरिका का रुख नहीं करना चाहेंगे, क्योंकि इसके लिए नए निवेश की जरूरत होती है और उच्च अमेरिकी लेबर कॉस्ट छूट से होने वाले गेन्स को कम कर सकती है.

पुरानी टेक्नोलॉजी, खराब क्वालिटी स्टैंडर्ड्स, स्किल गैप्स और उलझे हुए नियम भारतीय मैन्युफैक्चरिंग को प्रभावित कर सकते हैं. भारत अपने जीडीपी का केवल 0.64% रिसर्च और डेवलपमेंट पर खर्च करता है, जो इनोवेशन पर असर डालता है, जबकि चीन 2.4% और अमेरिका 3.5% खर्च करता है. भारत की लॉजिस्टिक्स कॉस्ट जीडीपी की 14-15% है, जिसकी नेशनल लॉजिस्टिक्स पॉलिसी 2022 के लक्ष्य के अनुसार घटकर 9% होने की उम्मीद है, जिससे कॉम्पटीशन बढ़ेगा. सरकार की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम मैन्युफैक्चरिंग को बेहतर बनाने में मदद कर रही है.

दूसरे एशियाई देशों का क्या?

नीति आयोग की दिसंबर 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत को ‘चीन प्लस वन स्ट्रैटेजी’ को अपनाने में सीमित सफलता मिली है, जबकि वियतनाम, थाईलैंड (Thailand), कंबोडिया और मलेशिया इससे काफी फायदा ले रहे हैं. रिपोर्ट में बताया गया कि सस्ते लेबर, सिंप्लीफाइड टैक्स कानून, कम टैरिफ और फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स पर हस्ताक्षर करने में तेजी जैसे फैक्टर्स ने इन देशों को फायदा पहुंचाया है. अब अमेरिकी व्यापार बाधाओं के मंडराते खतरे के साथ, भारत को मैन्युफैक्चरिंग में आसानी को तवज्जों देनी चाहिए.

Anu gupta

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