NGTV NEWS । NEWS DESK । बीजेपी, संघ, अटल बिहारी वाजपेयी और योगी आदित्यनाथ पर वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी किताबें लिख चुके हैं.
बीबीसी से बातचीत में त्रिवेदी कहते हैं, “बीजेपी का मौजूदा नेतृत्व, राजनीति और पार्टी में एक बड़ा पीढ़ीगत यानी जेनरेशनल बदलाव कर रहा है. यही वजह है कि पार्टी और संगठन के नेताओं की उम्र घटकर 50 के पास आ गई है. पार्टी अब नए और यंग चेहरों को पसंद कर रही है.”
वे कहते हैं, “महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड के सीएम जनरेशनल चेंज को दिखा रहे हैं. उनकी उम्र कम है.”
त्रिवेदी का मानना है, “वहीं कांग्रेस इसके उलट चल रही है. जब राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष थे. उन्होंने राजस्थान में सचिन पायलट की जगह अशोक गहलोत, मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की जगह कमलनाथ को चुना. अभी पार्टी अध्यक्ष खड़गे जी की उम्र 82 साल है.”
वे कहते हैं, “जब बीजेपी नए लोगों को मुख्यमंत्री बनाती है तो आलोचक आम तौर पर ये कहते हैं कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह किसी भी ऐसे व्यक्ति को नहीं चाहते, जो उन्हें चुनौती दे. लेकिन बात ये नहीं है. फिलहाल कोई भी ऐसा नहीं है जो उन्हें चुनौती दे पाए.”
त्रिवेदी का मानना है, “बीजेपी में एक मुख्यमंत्री के साथ दो उप मुख्यमंत्री बनाने की परंपरा नहीं थी, लेकिन अब सोशल इंजीनियरिंग को ध्यान में रखकर ऐसा किया जा रहा है.”
उत्तर प्रदेश में केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक को, छत्तीसगढ़ में अरुण साव और विजय शर्मा को और राजस्थान में दीया कुमारी को, मध्य प्रदेश में राजेंद्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा को उप मुख्यमंत्री बनाया गया.
प्रवेश वर्मा के नाम पर विजय कहते हैं, “वे दिल्ली में बदलाव का ट्रिगर प्वाइंट हैं. 15 दिन पहले तक लीडरशिप के नाम पर कोई नाम नहीं था, लेकिन प्रवेश वर्मा ने पूरा चुनाव पलट दिया.”
वे कहते हैं, “प्रवेश वर्मा को अमित शाह ने तैयार किया है. नतीजों के बाद दोनों की मुलाकात भी हुई है. लोग कह रहे हैं कि ज्यादा चर्चा में आने से रेस में पिछड़ सकते हैं, लेकिन महाराष्ट्र में फडणवीस के नाम को लेकर चर्चा थी, बाद में उन्हें ही बनाया गया.”
दो दशकों से पत्रकारिता कर रहीं विनिता यादव का कहना है, “बीजेपी एक ऐसे चेहरे को मुख्यमंत्री बनाएगी, जो ज़्यादा बगावती और वोकल ना हो. पिछले कुछ समय से पार्टी और संघ के अंदर मनमुटाव की खबरें आई हैं, लेकिन अब दोनों के बीच संबंध ठीक हो रहे हैं. ऐसे में संगठन की राय ली जाएगी.”
वे कहती हैं, “नंबर एक पर प्रवेश वर्मा का नाम लिया जा रहा है. वे नतीजों के बाद अमित शाह से भी मिले, लेकिन हमने दूसरे राज्यों में देखा है कि जो लोग मोदी-शाह के करीबी थे. उन्हें सीएम नहीं बनाया गया. ऐसे में प्रवेश वर्मा को सीएम की जगह अच्छा मंत्रालय दिया जा सकता है.”
विनिता कहती हैं, “सतीश उपाध्याय बीजेपी में मोदी-शाह की लॉबी के नेता नहीं रहे हैं. हालांकि कुछ सालों में वे खुद को यस मैन की भूमिका में ले आए हैं. बावजूद इसके उनकी उम्मीद कम लगती है.”
वे कहती हैं, “दिल्ली में बीजेपी की राजनीति को विजेंद्र गुप्ता ने ज़िंदा रखने का काम किया है. उन्होंने हार नहीं मानी और केजरीवाल सरकार के नाक में दम करके रखा. वे बहुत पुराने नेता हैं और बहुत कुछ जान रहे हैं, जो उनके ख़िलाफ़ जाता है.”इसके अलावा यादव दुष्यंत गौतम का नाम भी लेती हैं.पिछले 41 वर्षों से पत्रकारिता कर रहे विनीत वाही का कहना है कि जो नाम मीडिया में उछाले जा रहे हैं, उनके चांस कम दिखाई देते हैं.
वे कहते हैं, “सोशल मीडिया इतना हावी है कि फैक्ट, कैजुअल्टी बन रहे हैं. बीजेपी में सब कुछ पीएम नरेंद्र मोदी की तरफ़ से तय हो रहा है. ऐसे में क्या होगा, किसी को नहीं पता है.”
प्रवेश वर्मा के नाम पर वाही कहते हैं, “वे दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं. राजनीतिक परिवार से होने के चलते उन्हें फायदा मिला है. सांसद रहते हुए भी उन्होंने अच्छा काम किया है, लेकिन ऐसी ही स्थिति हरीश खुराना के साथ भी है.”
हरीश खुराना के पिता मदन लाल खुराना ने साल 1993 के विधानसभा चुनावों में मोती नगर से जीत हासिल की थी. इस जीत के बाद वे दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे.
उनका कहना है, “वे उत्तराखंड में चुनाव प्रभारी थे. उनके समय में पार्टी ने जीत दर्ज की. वे सारी परीक्षाएं पास कर चुके हैं, जहां से मोदी-शाह के पेपर बनकर निकलते हैं.”
वे कहती हैं, “भले चुनाव हार गए हैं लेकिन दुष्यंत गौतम पीएम मोदी के बहुत खास हैं. वे बड़ी ज़िम्मेदारियां निभा चुके हैं. आखिर में एक नाम मोहन सिंह बिष्ठ का भी है.
वाही कहते हैं, “हरीशा खुराना, प्रवेश वर्मा से भी पहले से सक्रिय हैं. बस उनका नाम उस तरह से नहीं उछाला जा रहा है. ऐसे में बीजेपी में क्या हो सकता है, इसका अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता.”
इसके अलावा वे मनोज तिवारी, हर्ष मल्होत्रा और बांसुरी स्वराज को भी मुख्यमंत्री का दावेदार मानते हैं.
उनका मानना है, “दिल्ली में करीब 25 प्रतिशत पूर्वांचली वोटर हैं, ऐसे में मनोज तिवारी को मौका दिया जा सकता है. हर्ष मल्होत्रा संगठन के आदमी हैं. बांसुरी स्वराज को हाल ही में पार्टी में लाया गया. लाते ही उन्हें सांसद का चुनाव लड़ाया गया. ऐसे कयास लगाए गए कि पार्टी उन्हें आगे लेकर जाना चाहती है.”वरिष्ठ पत्रकार अशोक वानखेड़े का कहना है, “बीजेपी का ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि ऐसा आदमी मुख्यमंत्री बनेगा, जिसकी चर्चा सबसे कम है.”
वे कहते हैं, “अब पुराने वाली बीजेपी नहीं रही है. अब पार्टी को किसी वरिष्ठ आदमी और अनुभव की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि सरकार तो ‘दिल्ली’ से ही चलनी है.वे कहते हैं, “प्रवेश वर्मा का काम अच्छा रहा है. मोहन सिंह बिष्ठ छठी बार विधायक बने हैं. उन्हें मुख्यमंत्री नहीं तो स्पीकर का पद दिया जा सकता है. विजेंद्र गुप्ता बहुत आक्रामक रहे हैं. वे दो बार नेता प्रतिपक्ष रहे हैं. केजरीवाल सरकार को परेशानी में डालते रहे हैं. आरएसएस से उनकी अच्छी बनती है.”
वाही कहते हैं, “आशीष सूद बीजेपी का पंजाबी चेहरा हैं. जनकपुरी से विधायक चुने गए सूद पार्षद भी रहे हैं. वे दिल्ली बीजेपी के महासचिव के साथ-साथ दिल्ली यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष भी रहे हैं. खास बात ये है कि वे पार्टी के शीर्ष नेताओं के करीबी भी हैं.”
Anu gupta